- प्रतिभूतियां (Securities)
- डिबेंचर (Debenture)
कंपनियां शेयरधारकों को भले ही लाभांश नहीं दे लेकिन उसे डिबेंचरधारकों को ब्याज देना ही होता है। सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला ट्रेजरी बॉन्ड या ट्रेजरी बिल आदि भी जोखिम रहित डिबेंचर ही होते हैं क्योंकि सरकार इस प्रकार के कर्ज चुकाने के लिए कर बढ़ा सकती है या अधिक नोटों का मुद्रण कर सकती है।
शेयर विभाजन (Stock Split)
कोई कंपनी अपने महंगे शेयर को छोटे निवेशकों के लिए वहनीय बनाने और उसे आकर्षक बनाने के लिए शेयरों का विभाजन करती है। अगर कोई कंपनी अपने शेयरों का विभाजन 2:1 में करती है तो उसका मतलब होता है कि शेयरों की संख्या दोगुनी कर दी गई है और उसका मूल्य आधा कर दिया गया है।
- मुद्रा का विनिमय मूल्य ( Exchange Value of Money )
- मुद्रास्फीति ( Money Inflation )
- मुदा अवमूल्यन ( Money Devaluation )
- रेंगती हुई मुद्रास्फीति ( Creeping Inflation )
- रिकॉर्ड तारीख ( Record List )
- रिफंड ऑर्डर (refund Order )
- लाभांश ( Dividend )
- लाभांश दर ( Dividend Rate )
- लाभांश प्रतिभूतियां ( Dividend Securities )
- शून्य ब्याज ऋणपत्र ( Zero Rated Deventure )
अन्य शब्दावली
बजट लेखा-जोखा : वित्त वर्ष के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न करों से प्राप्त राजस्व और खर्च के आकलन को बजट लेखा-जोखा कहा जाता है।
संशोधित लेखा-जोखा : बजट में किए गए आकलनों और मौजूदा आर्थिक परिस्थिति के मद्देनजर इनके वास्तविक आंकड़ों के बीच का अंतर संशोधित लेखा-जोखा कहलाता है। इसका जिक्र आने वाले बजट में किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): एक वर्ष के दौरान निर्मित सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें कृषि, उद्योग और सेवा - तीन क्षेत्र शामिल होते हैं।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी): एक वर्ष के दौरान तैयार सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य तथा स्थानीय नागरिकों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश के जोड़ को, विदेशी नागिरकों द्वारा स्थानीय बाजार से अर्जित लाभ में घटाने से प्राप्त रकम को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
वित्त विधेयक : नए कर लगाने, कर प्रस्तावों में परिवर्तन या मौजूदा कर ढांचे को जारी रखने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक को वित्त विधेयक कहते हैं।
विनियोग विधेयक : सरकार द्वारा संचित निधि से रकम निकासी को मंजूरी दिलाने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक विनियोग विधेयक कहलाता है।
वित्तीय घाटा : सरकार को प्राप्त कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर वित्तीय घाटा कहलाता है।
राजस्व प्राप्ति : सरकार द्वारा वसूले गए सभी प्रकार के कर और शुल्क, निवेशों पर प्राप्त ब्याज और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त रकम को राजस्व प्राप्ति कहा जाता है।
राजस्व व्यय : विभिन्न सरकारी विभागों और सेवाओं पर खर्च, ऋण पर ब्याज की अदायगी और सब्सिडियों पर होने वाले व्यय को राजस्व व्यय कहते हैं।
विनिवेश : सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है।
राष्ट्रीय ऋण : केंद्र सरकार के राजकोष में शामिल कुल ऋण को राष्ट्रीय ऋण कहते हैं। वित्तीय बजट घाटों को पूरा करने के लिए सरकार यह ऋण लेती है।
संचित निधि (कोष) : सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि में जमा होते हैं।
आकस्मिक निधि (कोष) : इस कोष का निर्माण इसलिए किया जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर आकस्मिक खर्चों के लिए संसद की स्वीकृति के बिना भी राशि निकाली जा सके।
पूंजीगत व्यय : सरकार द्वारा अधिग्रहीत विभिन्न संपत्तियों पर हुए खर्च को पूंजीगत व्यय की श्रेणी में रखा जाता है।
पूंजीगत प्राप्ति : इसमें सरकार द्वारा बाजार से लिए गए ऋण, भारतीय रिजर्व बैंक से ली गई उधारी और विनिवेश के जरिये प्राप्त आमदनी को शामिल किया जाता है।
अप्रत्यक्ष कर (इन्डायरेक्ट टैक्स) : वह टैक्स, जिसे आप सीधा नहीं जमा कराते, लेकिन यह आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है। देश में तैयार, आयात या निर्यात किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने वाले अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। इसमें उत्पाद कर और सीमा शुल्क शामिल किए जाते हैं।
प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) : वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है।
इन्कम टैक्स, व्यवसाय से आय पर कर, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स।
नवीन पेंशन योजना (एनपीएस) : सरकार ने इसमें कई बदलाव किए हैं। नई भर्तियों को अब सरकारी पेंशन नहीं मिलेगी। कमर्चारियों को अपनी तन्ख्वाह में से ही अपनी पेंशन की बचत करनी होगी। यह बचत करना अनिवार्य नहीं है, न ही इसमें कोई अपर लिमिट है, लेकिन अगर आप इसे करते हैं, तो कम से कम 500 रुपये आपको इसमें हर महीने डालने होंगे। खास बात यह है कि निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोग भी इसे अपना सकते हैं। फायदा यह है कि एनपीएस में जमा रकम की मियाद पूरी हो जाने पर जब कोई पैसा निकालेगा, तो उस पर उसी साल के कानून के मुताबिक टैक्स लगेगा।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं।
आयकर (इन्कम टैक्स) : वह टैक्स, जो सरकार आपकी आय पर आय में से लेती है। आपकी आमदनी के पहले एक लाख अस्सी हजार रुपये पर कोई कर नहीं लगता। एक लाख अस्सी हजार के बाद की कमाई पर टैक्स लगता है। जिनकी तनख्वाह दस लाख रुपये सालाना से ज़्यादा है, वो टैक्स के ऊपर भी टैक्स देते हैं, जिसे सरचार्ज कहा जाता है। इन्कम टैक्स में निजी कमाई और कंपनियों की आमदनी दोनों शामिल हैं।
मानक कटौती (स्टैण्डर्ड डिडक्शन) : आप अपनी आमदनी में से इंश्योरेंस, सीपीएफ, जीपीएफ, पीपीएफ, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी), टैक्स बचाने वाले म्यूचुअल फंड, पांच साल से ज़्यादा की एफ़डी, होम लोन के प्रिंसिपल (मूलधन) जैसे निवेशों में लगा सकते हैं, और ऐसे ही निवेशों को जोड़कर एक लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स में छूट दी जाती है। इस एक लाख रुपये को आपकी कुल आय में से घटा दिया जाता है और उसके बाद इन्कम टैक्स का हिसाब लगाया जाता है।
उत्पाद कर (एक्साइज़ ड्यूटी) : यह देश में बने और यहीं बिकने वाले सामान पर वसूला जाता है। कंपनियों को फैक्ट्री में से सामान निकालने से पहले इसे भरना ज़रूरी है। यह ज़रूरी नहीं कि एक ही तरह की चीज़ों पर बराबर एक्साइज़ ड्यूटी लगाई जाए। यह सरकार की कमाई के सबसे बड़े साधनों में से एक है।
औद्योगिक कर : औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लगाए जाने वाले कर। यह उस प्रतिष्ठान के मालिक पर लगाए गए व्यक्तिगत कर से अलग होता है।
सेवा कर (सर्विस टैक्स) : वह कर, जो आप सेवाओं पर देते हैं। जम्मू−कश्मीर के अलावा बाकी सभी राज्यों में सर्विस प्रोवाइडर को सर्विस टैक्स देना होता है। पहले यह 12 फीसदी था, लेकिन आर्थिक मंदी के चलते अब इसे घटाकर 10 फीसदी कर दिया गया है। सर्विस टैक्स फोन, रेस्तरां में खाना, ब्यूटी पार्लर या जिम जाने जैसी सेवाओं पर वसूला जाता है।
वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) : वैट वह कर है, जो आप किसी सामान की खरीद पर देते हैं। यह कर सेवाओं पर नहीं होता। जिन राज्यों में वैट लागू है, वहां पर एक्साइज़ ड्यूटी और सर्विस टैक्स अलग से वसूला जाता है। वैट राज्य स्तर पर वसूला जाता है। वैट वसूली की चार दरें हैं - यह शून्य से साढ़े बारह फीसदी तक होती हैं। ज़रुरी सामान - जैसे जीवनरक्षक दवाओं पर कोई वैट नहीं लगता, जबकि तंबाकू, शराब जैसे चीज़ों पर साढ़े बारह फीसदी की दर से वैट वसूला जाता है।
विक्री कर (सेल्स टैक्स) : सरकार किसी भी सामान की खरीद-फरोख्त पर कर वसूलती है। देश के ज्यादातर राज्यों मे अब सेल्स टैस की जगह वैट ने ले ली है, लेकिन सेल्स टैक्स सेवाओं पर भी वसूला जाता है। एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान के जाने पर चार फीसदी केन्द्रीय सेल्स टैक्स (सीएसटी) लगाया जाता है, जिसे अब धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है।
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